Tuesday, 20 November 2012

कुलटा-1 (सच्ची घटना पर आधारित कहानी)

मसूरी के पहाड़ की तलहटी से निकलती रिस्पना नदी। इस नदी के पानी से पूरे देहरादून के मैदानी क्षेत्र में सिंचाई के लिए किसी राजा ने नहर बनवाई। धीरे-धीरे नहर के किनारे मोहल्ले व बस्तियां बसने लगी। ऐसे ही एक खूबसूरत मोहल्ले में रहती थी विदूषी। विदूषी एक सरकारी संस्थान में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की पत्नी थी। उसकी तीन बेटियों के बाद एक बेटा था। विदूषी के पति को लालजी कहते थे, हालांकि उसका नाम कुछ और था। लालजी ने तीन-चार भैंस भी पाल रखी थी। इसके दूध से भी अच्छी खासी आमदानी हो जाती थी। घर का खर्च बड़े मजे में चल रहा था। विदूषी सिर्फ रसोई का काम संभालती। उसमें भी उसकी बेटियां मदद करती। लालजी नौकरी के अलावा जब घर में रहता तो भैंस के दाना, चारा आदि से ही जूझता रहता।
विदूषी का चरित्र कुछ संदिग्ध था। पड़ोस के एक व्यक्ति बट्टू के साथ उसकी खिचड़ी पक रही थी। बट्टू विदूषी से करीब सात-आठ साल छोटा था। उसके दो बेटे व एक बेटी थी। दोनों बेटे उसके पास ही रहते थे और पत्नी बेटी के साथ गांव रह रही थी। बट्टू क्लास थ्री टेक्निकल कर्मचारी था, जो अपने काम में दक्ष था। विदूषी की बड़ी बेटी की शादी हो गई, लेकिन उसके चरित्र में कोई परिवर्तन नहीं आया।
अक्सर पति लालजी से उसका विवाद होता रहता। एक दिन लालजी ने गुस्से में उसे घर से निकाल दिया। बट्टू ने भी उसकी मदद नहीं की। इस पर विदूषी एक कर्मचारी कुंवर साहब के घर जाकर पति से उत्पीड़न की मनगणंत कहानी सुनाने लगी। इस पर कर्मचारी की पत्नी को दया आ गई। उसने कहा कि आज रात मेरे घर रह लो। कल तक लालजी का गुस्सा कम हो जाएगा, फिर अपने घर चले जाना। विदूषी वहां एक दिन रही, फिर दो दिन बीते, फिर तीन दिन, लेकिन वह वापस जाने का नाम ही नहीं ले रही थी। इस पर कुंवर साहब की पत्नी ने विदूषी को अपने घर जाने को कहा। इस पर विदूषी ने बखेड़ा खड़ा कर दिया। वह बोली अब मैं इस घर से नहीं जाऊंगी। जो तेरा पति है वो मेरा भी है। मैं यहीं रहूंगी, यदि तूझे साथ नहीं रहना तो इस घर से निकल  जा। यह सुनकर कुंवर साहब की पत्नी सन्न रह गई। उसने पति कुंवर से हस्तक्षेप करने को कहा, लेकिन दो महिलाओं के झगड़े पर वह मौन हो गए।
कुंवर की पत्नी भला कैसे अपने पति को हाथ से जाने देती। उसने मोहल्ले की महिलाओं को आपबीती सुनाई। महिलाओं ने उसका साथ दिया और घर पहुंचकर विदूषी को बाहर निकाला। उसकी महिलाओं ने पिटाई की और कुंवर के घर से भगा दिया। गनीमत थी कि विदूषी कुंवर के घर से चली गई। इसके बाद कुंवर के व्यक्तित्व में परिवर्तन आया। इस घटना के करीब बीस  साल बाद कुंवर को किसी अच्छे कार्यों के लिए पदमश्री से भी सम्मानित किया गया। यदि तब विदूषी के मामले का पटाक्षेप नहीं होता, तो शायद वह पदश्री के हकदार भी नहीं रहते। कुछ इस तरह का था विदूषी का चरित्र, जबकि रूप, रंग व आदत से उसमें कोई ऐसा आकर्षण नहीं था कि जिसे खूबसूरत महिला कहा जा सके।
समय तेजी से बीत रहा था। विदूषी की बड़ी बेटी की शादी काफी पहले हो चुकी थी। अन्य दो बेटियां भी जवान हो रही थी। इसके बावजूद विदूषी का बट्टू से प्रेम प्रसंग कम नहीं हुआ। इसका असर दोनों के घर पर पड़ रहा था। विदूषी के दूसरे नंबर की बेटी भी बिगड़ने लगी, लेकिन खुद गलत होने पर विदूषी ने उसे समझाने का हक भी खो दिया। यदि वह बेटी को गेंदी नाम से युवक के साथ जाने पर टोकती तो बेटी भी उलटे मां से सवाल करती कि वह बट्टू के साथ क्यों घूमती है। बुढ़ापे की दहलीज पर कदम रख रहे लालजी ने सब्र भी खो दिया। जैसे ही बट्टू घर से निकलता लालजी उसे ताने देने लगता। इसने ही मेरी जिंदगी और मेरे परिवार को बर्बाद कर दिया है। आखिर ये क्या चाहता है। इस दौरान बट्टू चुपचाप आगे बढ़ जाता। खुद गलत होने पर उसके भीतर प्रतिरोध की ताकत तक नहीं थी। मोहल्ले के लोग भी चुपचाप सुनकर तमाशा देखते। इस पर भी न बट्टू को शर्म थी और न ही विदूषी को। एक दिन लालजी जंगल में भैंस के लिए चारा लेने गया था। जैसे ही चारा बांधकर उसने साइकिल पर रखा, तो सामने बट्टू को खड़ा पाया। बट्टू के इरादे कुछ और थे, जिसे भांप कर लालजी थर-थर कांपने लगा। बट्टू की मुट्ठी में पंच (पंजे के रूप में लोहे का हथियार) फंसा था। उसने सिर्फ इतना कहा कि लालजी तूने मुझे काफी जलील किया है। मैं आज तेरा हिसाब-किताब बराबर कर दूंगा। यह कहते ही उसने लालजी के चेहरे पर ताबड़तोड़ प्रहार कर दिए। तीन चार प्रहार में लालजी जमीन में गिर गया। उसे मरा समझकर बट्टू उसे घसीट कर ऐसे वीरान पुलिया पर ले गया, जिससे पूरे दिन भर में दो से तीन व्यक्ति ही गुजरते थे। लालजी को पुलिया से नीचे फेंकने को जैसे ही बट्टू तैयार हुआ, तभी उसे कुछ व्यक्तियों की आवाज सुनाई दी। जो शायद उसी तरफ आ रहे थे। इस पर बट्टू लालजी को वहीं छोड़कर भाग निकला और अपने घर पहुंच गया। (जारी)
भानु बंगवाल

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