Thursday, 22 November 2012

कुलटा-2-ये कैसा मित्रता धर्म, (सच्ची घटना पर आधारित)

एक कहावत है कि प्रेम में व्यक्ति अंधा हो जाता  है। उसे अच्छा व बुरा कुछ भी नहीं दिखाई देता। प्रेमपाश में फंसा व्यक्ति सिर्फ अपने ही बारे में सोचता है। या यूं कहें कि वो स्वार्थी हो जाता है। वह प्रेम की राह के कांटे साफ करता है। ऐसे कांटे को हटाने के लिए कई बार तो व्यक्ति गलत कदम तक उठाता है। शादीशुदा और बाल बच्चों वाले व्यक्ति जब ऐसे जाल में फंसते हैं, तो वे खुद बर्बाद होने के साथ ही अपने परिवार को भी कहीं का नहीं छोड़ते। ऐसे जाल से निकलना भी उनके लिए आसान नहीं होता। ऐसा व्यक्ति बेशर्म हो जाता है। उसकी करनी परिवार के सदस्यों को ही भुगतनी पड़ती  है। कहा जाता है कि हमारे अच्छे व बुरे कर्मों का फल यहीं मिलता है, लेकिन बट्टू जैसे कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें उनकी करनी की सजा नहीं मिल पाई।
पड़ोस की अपने से ज्यादा उम्र की महिला के प्रेम में फंसा तीन बच्चों का बाप बट्टू के साथ ही कुछ अलग नहीं था। जब महिला विदूषी का पति लालजी उसका परिवार बर्बाद करने वाले बट्टू को बार-बार टोकने लगा तो बट्टू ने उसे ही ठिकाने लगाने का मन बना लिया। एकांत पुलिया में वह लालजी से टकराया।  बट्टू ने लालजी पर हमला किया और मरा जानकार पुलिया से नीचे फेंकने लगा। तभी कुछ व्यक्तियों की आवाज सुनकर वह भाग निकला। लालजी अर्द्ध बेहोशी में था। साथ ही वह ऐसा उपक्रम कर रहा था कि बट्टू उसे मरा समझे। बट्टू के भागने पर लालजी किसी तरह उठा। प्राण निकलने को हो रहे थे, लेकिन भैंस के प्रति मोहमाया को भी नहीं त्याग सका। उसके कपड़े खून से रंग चुके थे। इसके बावजूद उसने चारे का गट्ठा उठाया और साइकिल के कैरियर में रखा। फिर रोते-रोते घर पहुंचा। घर पहुंचते ही बच्चों के सामने गिरकर बेहोश हो गया। घर में चीख पुकार मच गई। लालजी को अस्पताल पहुंचाया गया। जहां कुछ दिन बाद उसे होश आया। पुलिस बयान लेने पहुंची, लेकिन लालजी ने यह नहीं बताया कि उसकी यह दशा बट्टू ने की। लालजी को डर व शर्म दोनों थी। उसे लगा कि वह मरने वाला है। यदि वह बट्टू का नाम लेता है तो उसकी पत्नी भी जेल जाएगी। ऐसे में उसके बच्चों का क्या होगा। बच्चों ने लालजी की खूब सेवा की और वह ठीक होकर घर पहुंच गया। धीरे-धीरे मोहल्ले के लोगों को यह भी पता चल गया कि लालजी पर हमला किसने किया था। बट्टू की पत्नी तक गांव में जब यह बात पहुंची तो वह बेटी के साथ गांव छोड़कर देहरादून आ गई। बेटी जवान थी और देहरादून में ही बीए में दाखिला दिला दिया गया। इतना सब कुछ होने के बाद भी बट्टू व विदूषी के बीच प्रेम प्रसंग कम नहीं हुआ। बट्टू की पत्नी ने पति को सुधारने के लिए तांत्रिकों का भी सहारा लिया, लेकिन कोई बात नहीं बनी। बट्टू की पत्नी अक्सर महिलाओं के बीच जाकर अपना दुखड़ा रोती। इस पर उसे सहानुभूति के अलावा कुछ नहीं मिलता। धीरे-धीरे बट्टू की पत्नी की मित्रता सती नाम की महिला से बढ़ने लगी। उसे लगा कि सती ही उसके दुखः को समझती है। सती के दो बेटे व एक बेटी थी। बड़ा बेटा दसवीं में, दूसरा आठवीं में और बेटी छठी क्लास में पढ़ रही थी। पति फौज में था, जो साल मे एक दो बार ही छुट्टियां लेकर घर आता था। परिवार संपन्न था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था।
एक दिन सती ने बट्टू की पत्नी को वचन दे दिया कि वह बट्टू का विदूषी से पीछा छुड़वा देगी। कैसे छुड़ाएगी इसका उस समय शायद सती के पास भी जवाब नहीं था। सती व बट्टू की पत्नी की मित्रता इतनी बढ़ रही थी कि दोनों को एक दूसरे के घर का मीनू तक पता होता कि वहां भोजन में क्या बन रहा है। यही नहीं जब खाना बनता तो पकी दाल व सब्जी से भरी कटोरियों का परस्पर आदान प्रदान भी होता। बट्टू की पत्नी सीधी-साधी महिला थी, लेकिन सती कुछ ज्यादा ही चालाक थी। बट्टू के घर हर दिन जाने से वह घर से सभी सदस्यों से घुलमिल गई। धीरे-धीरे वह बट्टू से भी खुलकर बातें करने लगी। फिर बट्टू के व्यवहार में भी परिवर्तन आया और उसने विदूषी से दूरी बनानी शुरू कर दी। एक दिन ऐसा भी आया कि बट्टू का विदूषी से मिलना जुलना बिलकुल बंद हो गया। इसके विपरीत उसकी सती से ऐसी निकटता बढ़ी जैसे पहले विदूषी से थी। सच ही तो था कि सती ने बट्टू से विदूषी का पीछा छुड़ा दिया, लेकिन इसके बाद भी बट्टू की पत्नी खुश नहीं थी। वह बट्टू से सती का पीछा छुड़ाने की जुगत में लगी रहती और अपना दुखड़ा महिलाओं को सुनाती रहती।  (जारी.....)
भानु बंगवाल              

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