Saturday, 24 November 2012

कुलटा-3. ये कैसा प्रयाश्चित..(सच्ची घटना पर आधारित)

कोई व्यक्ति जब खुद गलत राह में होता है, तो वह दूसरों को ऐसे मार्ग पर न चलने के लिए समझाने की स्थिति में भी नहीं होता। वह समझाने का हक खो चुका होता है। शराबी व्यक्ति नहीं चाहेगा कि उसका बेटा शराबी बने। यदि बेटा पिता की तरह शराब पीने लगे तो पिता की स्थिति उसे समझाने की नहीं रहती। इसी तरह चरित्रवान व्यक्ति ही अपने बेटे को अच्छे चरित्र की नसीहत दे सकता है। पूरी जिंदगी दूसरी महिलाओं के साथ प्रेम प्रसंग में गुजारने वाला बट्टू अपने साथ रह रहे दो बेटों की तरफ ध्यान नहीं दे पाया। हालांकि वह परिवार में काफी सख्त था। बच्चे उससे डरते थे, लेकिन बच्चों को वह वो संस्कार नहीं दे सका, जिसकी अपेक्षा एक पिता अपने बच्चों से करता है। इसके बाद पिता के समक्ष सिर्फ प्रयाश्चित करने के अलावा कुछ नहीं बचा रहता।
बेटी के मामले में बट्टू किस्मत का इतना धनी जरूर रहा कि बेटी गुणवान थी। उसका उसने विवाह भी करा दिया। सबसे बड़ा बेटा सैंटी कुछ पिता के नक्शेकदम पर ही चल रहा था। उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता। दिन भर वह आवारागिर्दी में रहता। तीन बार दसवीं क्लास में ही फेल हो गया। उसकी एक आदत और खराब हो गई कि वह आसपड़ोस के बच्चों के घर जब जाता, तो वहां से कुछ सामान व पैसे चोरी करने में भी पीछे नहीं रहता। ऐसे में कई बार उसकी चोरी पकड़ी भी गई और लोगों ने इसकी शिकायत बट्टू से भी की। सैंटी शक्ल व सूरत से काफी सुंदर था। पिता की तरह वह भी लड़कियों की तरफ भागता और उसकी कुछ प्रेमिकाएं भी थी। सबसे छोटा बेटा बुद्धि का कुछ  कमजोर था। कमजोर बुद्धि का होने के पीछे एक कारण यह भी था कि वह भांग खाने लगा था। शुरू में बट्टू को इसका पता नहीं चला पाया। भांग के नशे में रहने के कारण छोटे बेटे की बुद्धि मंद पड़ने लगी। वह भी आठवीं के बाद पढ़ाई नहीं कर पाया।
बीड़ी, सिगरेट,शराब व लड़कियों का साथ। यही सब सैंटी की आदत पड़ती जा रही थी। बड़े बेटे की बिगड़ती आदत को देख बट्टू ने उसे सुधारने का काफी प्रयास किया, पर कोई असर नहीं पड़ा। जब कोई उपाय नहीं सूझा तो बट्टू ने बड़े बेटे को देहरादून से बाहर भेजने का मन बना लिया। बट्टू का छोटा भाई मुंबई में रहता था। उसने उसी के पास यह सोचकर अपने बेटे को भेजा कि शायद अपने चाचा के पास जाकर सैंटी में सुधार हो जाएगा। सैंटी मायानगरी मुंबई गया और वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी करने लगा। कुछ साल तक सैंटी ने बड़ी लगन व मेहनत से काम किया। अपना खर्च निकालने के बाद वह कुछ बचे पैसे अपनी मां को भी भेजता। इस पर बट्टू खुश था कि चलो बड़ा बेटा अपने पांव पर खड़ा हो गया है।
मुंबई में करीब तीन साल शांति से गुजारने के बाद सैंटी के जीवन में एक तूफान आया, जिसने बट्टू को भी परेशान कर दिया। वहां भी युवतियों से दोस्ती करने की आदत सैंटी की नहीं गई। अक्सर वह किसी युवती से दोस्ती करते समय यही कहता कि वह उसी से शादी करेगा। एक दूसरे संप्रदाय की युवती से उसकी दोस्ती हुई और इतने आगे बढ़ी कि फिर पीछे लौटना उसके लिए मुश्किल हो गया। दोनों के परिजन इस रिश्ते को तैयार नहीं थे। फिर वही हुआ जो अक्सर प्रेम करने वालों के मामले में होता है। सैंटी लड़की को लेकर घर से भाग गया। लड़की का पिता पुलिस में था, जो काफी कड़क था। उसने दोनों को तलाश किया और पकड़ लिया। सैंटी को कुछ दिन हवालात में रखा गया। फिर दोनों की शादी करा दी गई।
जीवन भर अपनी सुंदर पत्नी को छोड़कर दूसरी महिलाओं के पीछे भागने वाले बट्टू का बेटा जब पिता से एक कदम आगे बढ़ा तो बट्टू परेशान हो उठा। उसने अपने बेटे से नाता तोड़ दिया। बट्टू ने सैंटी को स्पष्ट कह दिया कि वह उसके घर कभी न आए। यदि कभी आया भी तो उसे पहले अपनी पत्नी को छोड़ना होगा। सैंटी के तीन बच्चे हुए। मायानगरी मुंबई में रहने वाला सैंटी एक दिन अचानक देहरादून अपने पिता के घर पहुंचा। साथ में वह करीब पांच साल के बड़े बेटे को लेकर आया था। सैंटी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। यह बट्टू भी जानता था कि तीन बच्चों के साथ उसका मुंबई में गुजारा मुश्किल है। फिर भी वह कुछ नहीं बोला। सैंटी का बेटा अपने दादा बट्टू व दादी से काफी घुलमिल गया था। बट्टू ने बच्चे को बाजार से नए कपड़े आदि दिलाए। वह भी दादा के पास ही रहता, बातें करता, उसके साथ ही घूमने-फिरने जाता और दादा के साथ ही सोता। एक सप्ताह के लिए घर आया सैंटी जब वापस जाने लगा तो तब तक सैंटी का बेटा देहरादून के माहोल में पूरी तरह रचबस चुका था। जाते समय वह चिल्लाने लगा कि मैं दादाजी के पास रहूंगा। इस पर बट्टू ने सैंटी से कहा कि मुझे तूझसे और तेरी पत्नी से कोई नाता नहीं रखना। मैने तेरा लालन-पालन ठीक से नहीं किया, लेकिन अब इसका प्रयाश्चित करने जा रहा हूं। तू अपना बड़ा बेटा मुझे दे दे। मैं इसे पालपोसकर बड़ा आदमी बनाउंगा। इस पर सैंटी अपने बेटे को बट्टू के पास छोड़कर विदा हो गया, जो करीब दस साल से दोबारा वापस नहीं आया। (जारी....)
भानु बंगवाल  

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