Thursday, 29 November 2012

मोह खाकी का....

जीवन भर खाकी पहनो और उसमें दाग न लगे, ऐसा संयोग काफी कम लोगों के ही साथ संभव होता है। कई तो बेचारे ईमानदार होते हैं, लेकिन अपने बेईमान साथियों की गलतियों का उन्हें भी शिकार होना पड़ जाता है। ये पुलिस की नौकरी भी ऐसी है, जो करता है उसके परिचित, रिश्तेदार सभी उसके बारे में यही सोचते हैं कि ऊपरी आमदानी से वह काफी कमा लेता होगा। ऐसे व्यक्ति का जब रिश्ता होता है तो लड़की वाले भी वेतन के साथ ऊपरी आमदानी मान कर चलते हैं। भले ही दूसरों को कोई नसीहत देता है, लेकिन अपने मामले में ऐसी नसीहत को भूल जाता है। इसके बावजूद कई अधिकारी ऐसे रहे जो जीवन भर ईनामदारी का दायित्व निभाते रहे। ऐसे ही एक अधिकारी थे, जो कई सालों तक होमगार्ड के कमांडेट के साथ ही नागरिक सुरक्षा के अधिकारी का दायित्व निभाते रहे।
इस व्यक्तित्व की खासीयत थी कि वह सरकारी गाड़ी का उपयोग भी आफिस के काम के लिए ही करते थे। निजी काम के लिए वह आफिस की गाड़ी पर नहीं बैठते। स्टाफ में हर व्यक्ति को वह ईमानदारी व अनुशासन का पाठ पढ़ाते थे। घर पहुंचने पर जब वह गाड़ी वापस भेजते तो कितना किलोमीटर तक चली, यह भी अपनी डायरी में नोट कर लेते। इसके पीछे उनकी मंशा यह रहती कि कहीं ड्राइवर गाड़ी का दुरुपयोग न करे।
होमगार्ड एक स्वयंसेवी संस्था है। इसमें तैनात जवान पहले सरकारी नौकरी वाले भी होते थे। जो नौकरी के साथ होमगार्ड के रूप में योगदान देते थे। जब ड्यूटी लगती, इसका उन्हें कुछ मेहनताना भी मिल जाता था। अब इस सेवा में भी काफी परिवर्तन आ गया। होमगार्ड को दैनिक मजदूरी के रूप में नियमित कार्य मिल रहा है। उत्तराखंड में तो ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए होमगार्ड के युवक व युवतियों को मुख्य चौराहों में तैनात किया जाने लगा है। ऐसे ही एक होमगार्ड था नदीम। नदीम कुछ ज्यादा ही शातिर था। उसकी ड्यूटी जिस चौराहे पर होती, वह वहां पर तैनात अन्य पुलिस वालों का खासमखास हो जाता। यही नहीं, वह वाहन चालकों की गलतियां पकड़ता। उन्हें रोकता और उनसे वसूली करता। नदीम को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह होमगार्ड का स्वयंसेवक है। सिर पर वह टोपी नहीं लगाता था, क्योंकि टीपी के रंग से यह पता चल जाता कि वह होमगार्ड का जवान है। कंधे पर लगे होमगार्ड के बैच किसी को नजर नहीं आएं, इस पर वह सर्दियों में खाकी जैकेट पहनता। वहीं, गरमियों में बैच को उलटा कर देता।
नदीम पुलिस के लिए वसूली करता था। इस पर वह पुलिस का भी चहेता बनता चला गया और उसकी तैनाती चौराहे से थाने में हो गई। थाने में तो जो भी थानेदार आया, नदीम उसका खासमखास बना। अधिकारियों पर अपनी धाक जमाने की कमाल की कला थी उसमें। अधिकांश थानेदार उसका उपयोग अपनी जीप चलाने में चालक के रूप में करते।
समय के साथ नदीम ने तालमेल बैठाया और चतुराई से इतना कमाया कि वह पकड़ा भी नहीं गया। फिर उसने ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा और जीत भी गया। उसके दोनों हाथों में लड्डू आ गए। दो तरफा कमाई कब तक चलती। इसकी शिकायत अधिकारियों से हुई कि एक व्यक्ति दो पदों पर रहकर दोहरी जिम्मेदारी निभा रहा है। इस पर नदीम को होमगार्ड से हटा दिया गया और जांच बैठा दी गई। नदीम भी काफी पहुंचवाला था। उसने दोबारा वर्दी पहनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। उसकी अर्जी के साथ सिफारिश के पत्रों का भी चट्टा लगने लगा। विधायक, मंत्री से लेकर कई अधिकारी उसके पक्ष में सिफारिश कर चुके थे। हर अधिकारी की टेबल से उसकी अर्जी उसे दोबारा होमगार्ड में रखने की प्रबल संस्तुति के साथ आगे बढ़ रही थी। अंत में उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक कार्यालय में उसकी अर्जी पहुंची। यह अर्जी ईमानदार कमांडेंट के पास जैसे ही गई, उन्होंने सभी नेता, मंत्री व अधिकारियों की सिफारिश को दरकिनार कर अर्जी को ही निरस्त कर दिया। प्रधान होने के बावजूद नदीम होमगार्ड की वर्दी को दोबारा पहनने की जुगत में लगा है। इसके लिए उसकी कोशिश जारी है।....
भानु बंगवाल      

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