Sunday, 11 November 2012

संभलकर रहना, कब पड़ जाए धप्पा...

बचपन मैं मुझे छुपनछुपाई का खेल काफी अच्छा लगता था। क्योंकि इस खेल में यदि साथी मिल जाएं तो कोई तामझाम की जरूरत नहीं पड़ती थी। कहीं भी छिपने की जरा आड़ मिल जाए तो इस खेल में मजा भी काफी आता था। इस खेल में एक बच्चा डेन बनता है, जो अन्य छिपे साथियों तलाशता है। नजर पड़ने पर उन्हें आइसपाइस कहता है। छिपने वाले साथी डेन को दोबारा से परेशान करने के लिए उसकी फीट पर थपकी देने का प्रयास करते हैं। थपकी के साथ ही धप्पा बोला जाता है। यदि डेन के आइसपाइस बोलने से पहले उसे धप्पा पड़ जाए तो दोबारा से उसे डेन बनना पड़ता है। यदि वह धप्पे से बच गया तो पहली बार वह जिसे आइसपाइस बोलता है, उसे डेन बनना पड़ता था।
इसी खेल में मुझे एक कहानी याद आ गई। एक वृद्ध दंपती घर में अकेले बैठे बोर होने लगे तो वे बचपन की बाते करने लगे। आदतन बूढ़ा व्यक्ति बच्चों  की तरह ही हो जाता है। वह हर चीज में नखरे करने लगता है। इस दंपती ने जब बचपन की यादें ताजा की तो उन्हें शरारत सूझी। इस पर उन्होंने सुनसान पड़े घर में आइसपाइस खेलने का मन बनाया। बेटे व बेटी बाहर रहत थे। घर में कोई नहीं था, सो उन्होंने आइसपाइस खेलना शुरू किया। पहले छिपने की बारी बुढ़िया की आई। वृद्ध ने उसे खोज कर आइसपास बोल दिया। फिर बुढ़िया डेन बनी और वृद्ध व्यक्ति छिप गया। बुढ़िया ने अपने पति को खोजने-खोजते घर का कोना-कोना छान मारा, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। घड़ी की सुईं घूम रही थी और बूढ़ा मिल नहीं रहा था। साथ ही बुढ़िया की चिंता बढ़ रही थी। वह बोली अब दोपहर का खाने का वक्त हो गया है। जहां कहीं भी छिपे हो बाहर निकल जाओ। बूढ़ा तब भी नहीं आया। इस पर बुढ़िया को गुस्सा आने लगा। वह हार मानने से साथ ही चेतावनी देने लगी कि यदि वह बाहर नहीं निकला तो वह दूसरे शहर में रह रहे अपने बड़े बेटे के पास चली जाएगी। इस पर भी बूढ़ा बाहर नहीं आया। बुढ़िया का पारा लगातार चढ़ रहा था। उसने आटो मंगवाया और उसमें अपना कपड़ों का बड़ा संदूक रखा। संदूक मे पहले से ही कपड़े रखे थे। इसलिए उसे खोलकर भी नहीं देखा। पति को अंतिम चेतावनी देने के साथ ही वह आटो में बैठी। फिर ट्रेन पकड़ी और पहुंच गई बड़े बेटे के घर। वहां जाकर बेटे व बहू भी चौंके की अचानक माताजी कैसे आ गई। इस पर बुढिया ने सफाई दी कि कई दिनों से मिलने का मन हो रहा था, इसलिए चली आई। उन्होंने कहा कि पिताजी को क्यों नहीं लाई। इस पर उसने कहा कि उन्हें जरूरी काम था। वह बाद में आ जाएंगे। सास के नहाने धोने के लिए बहू ने पानी गरम किया। नहाने से पहले बुढ़िया ने कपड़ों के लिए संदूक खोला। तभी संदूक के भीतर छिपा बुड्ढा तपाक से बोला धप्पा.........।
ये तो थी एक कहानी, जिससे सुनकर हम हंस सकते हैं या फिर दूसरों को सुनाकर मनोरंजन कर सकते हैं। आज मैं देखता हूं कि व्यक्ति जीवन में भी आइसपाइस खेल रहा है। वह अपनी गलतियों को छिपाने का प्रयास करता है। यदि पकड़ा जाए तो पीछे से धप्पा बोलने वाले भी कई हैं। युवा होते ही बेटा माता-पिता से आइसपाइस खेलने लगता है। कर्मचारी अपने बॉस से, नेता जनता से, सरकार प्रजा से यानी हर कोई किसी न किसी से आइसपासइस खेल रहा है। व्यक्ति कितना भी झूठ व फरेब का आइसपाइस खेले, लेकिन एक दिन धप्पा पड़ना निश्चित है। तभी तो देश में कई नेताओं के घोटाले उजागर हो रहे हैं। धप्पा बोलने वाले केजरीवाल जैसे लोग आगे आ रहे हैं। यही नहीं अब तो धप्पा कब और कहां पड़ जाए इसका भी अंदाजा व्यक्ति को नहीं रहता। मेरा एक भांजा दिल्ली में रहता है। वह वहीं किसी कंपनी में नौकरी करता है। रहने के लिए उसके साथ दो अन्य रूम पार्टनर हैं। इनमें से एक तो उसका मौसेरा भाई है। भांजे का हाल ही में रिश्ता तय हुआ। लड़की भी दिल्ली में रहती है। कुछ दिन पहले की बात है कि भांजे का जन्मदिन आया। रूम पार्टनर साथियों ने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर उसे पार्टी देने को कहा। उसने पार्टी दी, लेकिन गनीमत यह थी कि किसी ने शराब की डिमांड नहीं की और न ही पी। शायद वे तीनों शराब से दूर ही रहते हैं। या फिर यदि पीते हैं तो अपने बड़े बुजुर्गों से आइसपाइस खेल रहे हैं। मौज मस्ती के बाद रात करीब 12 बजे केक काटकर सभी बिस्तर पर सौने की तैयारी करने लगे। घर की घंटी बजी। इतनी रात कौन आया, पहले सभी शंकित हो गए। फिर बर्डडे ब्वॉय ने दरबाजा खोला, तो सामने देखकर वह चौंक गया। वहां धप्पा मारने के लिए वह लड़की खड़ी थी, जिससे उसकी शादी होने वाली है। जो अपने भाइयों के साथ उसके लिए केक लेकर आई थी। 
भानु बंगवाल

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