Sunday, 25 November 2012

कुलटा-4.असर घर का, कलाकार की मौत (सच्ची घटना पर आधारित कहानी)

कहावत है कि जैसा करोगे संग, वैसा चढ़ेगा रंग। यानी व्यक्ति पर संगति का भी असर पड़ता है। अच्छे व्यक्तियों के बीच में यदि कोई बुरा व्यक्ति पहुंच जाए तो उसका व्यवहार भी अच्छों की तरह ही होने लगता है। वहीं, इसके विपरीत बुरे लोगो के साथ रहने पर अच्छा व्यक्ति भी बुरों की तरह व्यवहार करने लगता है। ये तो रही व्यक्तियों  की बात। लेकिन, किसी घर में शिफ्ट होने वाले परिवार के किसी सदस्य का व्यवहार यदि ऐसा हो जाए जो उस मकान में रहने वाले पहले व्यक्तियों की तरह हो। तो इसे क्या कहा जाएगा। अंधविश्वासी तो इसे कई किवदंतियों से जोड़ देंगे, लेकिन अन्य  लोग इसे संयोग या महज इत्तेफाक की संज्ञा देंगे। ऐसा ही कुछ उस घर में घटा, जिसमें बट्टू रहता था।
बट्टू का चरित्र अच्छा नहीं था। अपनी पत्नी को छोड़कर वह दूसरी महिलाओं की तरफ भागता रहा और उनसे प्रेम संबंध बनाता रहा। बट्टू का प्रोमशन हो गया। इस पर उसे दो कमरों का सरकारी मकान छोड़ना पड़ा। बट्टू तीन कमरे के फ्लैट में शिफ्ट हो गया। उसके पुराने घर को एक दूसरे कर्मचारी प्रकाश को दे दिया गया। इस कर्मचारी को पूरे मोहल्ले में हर व्यक्ति पसंद करता था। यह कर्मचारी एक कारपेंटर था, जो हास्य कलाकार भी था। सामने वाले की हूबहू आवाज निकालकर नकल करना प्रकाश की खासियत थी। करीब तीस-पैंतीस साल पहले छोटे-छोटे हास्य चुटकिले बनाकर उसे ऐक्टिंग के साथ पेश करने वाले इस कलाकार को लोग विवाह समारोह में भी बुलाते थे। समारोह में वह बारातियों के साथ ही घरातियों का भी मनोरंजन करता। साथ ही अपने लिखे गीतों की प्रस्तुति भी देता। जब यह कलाकार किसी मंच में चढ़ जाता तो सुनने वाले कभी यह नहीं चाहते कि वह जल्द मंच से उतरे। लोग फरमाइश करते और कलाकार भी कभी निराश नहीं करता।
इस कलाकार पर हमउम्र की युवतियां भी फिदा होती थी, लेकिन वह चरित्र के मामले में बट्टू जैसा नहीं था। उसका लक्ष्य तो सिर्फ लोगों को हंसाना था।  पहले कलाकार किराये के मकान में रह रहा था। उसके दो बेटे व एक बेटी थी। पत्नी घरेलू महिला थी, जो ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी। यह कलाकार अफसरों का भी चहेता था। आफिस का कोई समारोह होता तो वही उसमें चार चांद लगाता। नई-नई कहानियां गढ़कर अफसरों की नकल तक उतार देता, लेकिन जिसकी भी नकल उतारता वह भी बुरा नहीं मानता।
सब कुछ ठीकठाक चल रहा था। बट्टू के पुराने मकान में शिफ्ट होने के बाद  प्रकाश की पत्नी रामी ने पति से कहा कि मोहल्ले में कई लोगों ने गाय व भैंस पाल रखी हैं। हम भी क्यों न पालें। बच्चों की स्कूल की फीस व घर के राशन का कुछ खर्च दूध बेचने से होने वाली आमदानी से निकल जाएंगा। प्रकाश ने पत्नी को एक शर्त में गाय पालने की अनुमति दे दी कि इस काम में वह हाथ नहीं लगाएगा। वह गाय खरीदने के पैसे दे देगा, लेकिन चारा, पत्ती, दाना, भूसा आदि लाने व गाय को खिलाने का काम रामी खुद करेगी। दूध भी वही निकालेगी और बेचेगी भी वही। रामी खुश थी और एक जर्सी नस्ल की बछिया खरीद ली गई। दो-तीन साल मेहनत के बाद बछिया गाय बनी। दूध बेचा और कुछएक साल में प्रकाश की पत्नी के पास दो तीन गाय और हो गई।
कलाकार प्रकाश अधिकांश शाम को किसी समारोह में जाता और देर रात को घर लौटता। हां कुछ दारू भी पिए होता। घर में क्या चल रहा है, यह देखने की उसे फुर्सत भी नहीं होती। चारा लेने हर दिन जंगल जाते-जाते इस कलाकार की पत्नी एक व्यक्ति को दिल दे बैठी। वह व्यक्ति एक सरकारी संस्थान में मिस्त्री था, जिसका अपना भरा पूरा परिवार था। पहले दोनों बाहर चोरी-छिपे मिलते थे, जब दोनों का प्रेम जगजाहिर होने लगा तो उनकी शर्म भी जाती रही। बेचारा कलाकार प्रकाश इन सब बातों से अनजान था। एक बार किसी ने उसे इशारों में यह बताने का प्रयास किया कि उसके घर में क्या चल रहा है। इस पर कलाकार उससे ही लड़ने लगा। इससे बाद से उसका अक्सर पत्नी से झगड़ा भी होने लगा। एक शाम घर से प्रकाश यह कहकर निकला कि वह किसी कार्यक्रम में भाग लेने शहर से बाहर जा रहा है। वह दो दिन बाद लौटेगा। बाहर जाने की बात प्रकाश ने पत्नी से झूठ कही थी। रात करीब 12 बजे वह अचानक घर पहुंच गया और सुबह गोशाला में उसका शव पड़ा मिला। प्रकाश की मौत को महज दुर्घटना करार दिया गया। यह कहा गया कि शराब के नशे मे वह गोशाला में घुस गया। वहां गाय की ठोकर से गिर गया होगा। पूरी रात वहीं गिरा रहा और बार-बार गाय के खुर तले रौंदता रहा। इस मामले में पुलिस आई और उसने भी दुर्घटना की मोहर लगा दी। उधर, मोहल्ले के  लोग इसे दुर्घटना मानने को तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि प्रकाश मवेशियों के काम में हाथ तक नहीं बंटाता था। ऐसे में वह गोशाला में क्या करने गया, लेकिन कोई भी व्यक्ति इस मामले में पुलिस से शिकायत करने को आगे नहीं आया। यह चर्चा कई साल तक रही कि एक कलाकार को कुलटा ने प्रेमी के साथ मिलकर मार डाला।  (जारी) 
भानु बंगवाल

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