Saturday, 18 February 2012

स्टेज का सामना...

छोटे से ही मुझे रामलीला देखने जाने का बहुत शौक था। घर में सबसे छोटा होने के कारण मुझे कोई रामलीला देखने को ले जाने के पक्ष में नहीं रहता था। इसका कारण यह था कि रामलीला हमारे घर से तीन किलोमीटर दूर आयोजित होती थी। तब रामलीला देखने रात करीब आठ बजे मोहल्ले के लोग पैदल ही जाते थे। जाते समय तो मुझमें उत्साह रहता, लेकिन जब रामलीला समाप्त होती और घर आने का समय होता तो मुझे नींद आने लगती। ऐसे में मेरी बड़ी बहनें मुझे गोद में उठाकर लाती। साथ ही मुझे कोसती थी क्यों आया। कल से मत आना। मैं चुपचाप उनकी डांट सुनता। अगले दिन फिर रामलीला देखने की जिद करता और इस जीद में अक्सर जीत भी जाया करता था।
मेरी उम्र करीब दस साल रही होगी। रामलीला देखकर मुझे अक्सर सभी पात्रों के गाने व डायलाग याद हो चुके थे। मैं भी मंच में चढ़ना चाहता था, लेकिन कैसे चढ़ूं इसकी तिगड़म भिड़ाता रहता था। राम की सेना में बंदर या फिर रावण की सेना का राक्षस का ही पात्र क्यों न बनना प़ड़े, लेकिन शरीर से कमजोर होने के कारण मुझ पर बंदर की ड्रेस ढीली पड़ती थी। राम की सेना की मार खाने पर कहीं चोट न आ जाए, इसलिए कोई मुझे राक्षस बनने का मौका तक नहीं देता था।
इस पर मैने एक दिन स्टेज पर गाना  गाने के लिए अपना नाम लिखवा दिया। स्टेज में दूसरे सीन की तैयारी के दौरान खाली समय को भरने के लिए मेरा नाम पुकारा गया। मैं मंच में चढ़ा। किसी तरह मैने कहा कि भाइयों और बहनो। मैं आपके सामने अमर, अकबर, एंथोनी फिल्म का गाना प्रस्तुत कर रहा हूँ । इसमें कोई त्रुटी होगी तो माफ करना। मैने हारमोनियम वाले को बजाने का इशारा किया और गाने लगा-अनहोनी को होनी करदे होनी को अनहोनी। तभी मैरी नजर सामने भीड़ में बैठी अपनी बड़ी बहन पर पड़ी। वह मूझे घूर रही थी। उसे देख मैं सोचने लगा कि शायद वह यही सोच रही होगी कि बच्चू तू मंच में अपनी भद पिटवाने को क्यों चढ़ा। घर जाते समय तेरी खबर लूंगी। बस क्या था मैं गाने की लाइन भूल गया। और बार-बार --अमर, अकबर, एंथोनी ही कहता रहा। फिर चुप हो गया। स्टेज से बाहर खड़े रामलीला के आयोजक मुझे कहते रहे कि मंच से उतर जा पर मैं कांप रहा था। न मुझे उतरने की सुध रही,  न गाना गाने की और न ही मुझे रोना आ रहा था। तभी एक व्यक्ति मंच पर चढ़ा और मेरा हाथ खींच कर मुझे मंच से उतार गया। उस दिन से मैनें मंच में चढ़ने में तौबा कर ली। जिस काम को मैं आसान समझता था, वह तो काफी मुश्किल लगा। तब मैने तय किया कि यदि मंच में चढ़ना हो तो पूरी तैयारी के साथ। वर्ना वही हाल होगा, जो मैरा हो चुका था।

                                                                                                    भानु बंगवाल

No comments:

Post a Comment