पढ़ाई की कोई आयु सीमा नहीं होती। यह तो किसी भी उम्र में भी की जा सकती है। चालीस के पार पहुंचने के बाद भी लोग पढ़ते हैं और साठ के पार होने के बाद भी। किस समय पढ़ाई का शौक चर्रा जाए, इसका किसी को पहले से पता हीं रहता। पढ़ाई के बाद ठीकठाक रोजगार मिला। तो पढ़ने की इच्छा ही समाप्त हो गई। बीस साल तक इस तरफ ध्यान ही नहीं गया। घर में बच्चों को पढ़ते हुए देखता था। शादी के बाद से पत्नी की पढ़ाई भी छूटी थी। प्राइवेट नौकरी करने के दौरान उसने एमए भी कर लिया। फिर बीएड। उसकी देखादेखी मुझे भी पड़ने का शौक लगा। सो मैने भी पत्रकारिता में एमए करने की ठान ली और भर दिया फार्म। ओपन यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। कुछ हिचक व शर्म भी आई। कोई देखेगा तो क्या कहेगा। एक बार मेरी बड़ी बहन ने नौकरी में प्रमोशन के लिए पढ़ाई दोबारा शुरू की थी। तब उसने बताया कि एक साठ साल की महिला भी उनके साथ परीक्षा दे रही थी। उसके इस उम्र में परीक्षा देने का कारण तो मुझे समझ नहीं आया था, लेकिन ज्यादा उम्र में पढ़ने से संकोच जरूर होने लगा। खैर जो हो देखा जाएगा, यही सोचकर मैने किताबों का अध्ययन करना शुरू कर दिया। भले ही किसी काम की प्रैक्टिकल जानकारी कितनी भी हो, लेकिन किताबी ज्ञान भी जरूरी है। समय बीता और परीक्षा निकट आई। मैं परीक्षा देने गया, तो देखा कि कई पत्रकार भी परीक्षा देने के लिए पहुंचे हैं। इनमें कुछ नवोदित थे, तो एक ऐसे भी थे, जो बड़े सामाचार पत्र से कई साल पहले सेवानिवृत हो चुके थे। काफी सीनियर भी थे। जब सामने पड़े तो उन्होंने कहा कि मैं मजाक में परीक्षा दे रहा हूं। एक और बड़े पत्र के संपादक भी मेरे आगे बैठे हुए थे। गंभीर स्वभाव के कारण वह ज्यादा नहीं बोलते थे। हरएक का पढ़ाई फिर से जारी रखने के पीछे कुछ न कुछ तर्क जरूर था। चाहे कोई किसी की प्रेरणा से पढ़ाई कर रहा हो, या फिर अपना करियर बनाने के लिए। फिर भी एक बात तय थी कि आगे पढ़ाई जारी रखने वाले को आत्म संतुष्टी जरूर होती है।
भानु बंगवाल
भानु बंगवाल
सही कहा सर आपने, पढाई की न तो कोई उम्र होती है और न ही कोई समय।
ReplyDeletesir g india padega tbhi to aagey badega..
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