Monday, 6 February 2012

मजार....

बचपन से सुना था कि धोबीघाट के निकट बनी मजार पर मत जाना। अगर जाओ तो ज्यादा देर मत ठहरना। वहां हाथ जोड़ना और आगे बढ़ चलना। वहां आसपास कहीं भी लघुशंका बिलकुल मत करना। यदि की तो सैय्यद बाबा कभी माफ नहीं करेंगे। ऐसा ही डर मैरे साथ ही मोहल्ले के सभी  बच्चों के मन में बैठा रखा था। बच्चे क्या बड़ों के मन में भी उस स्थान के प्रति डर बैठा हुआ था। ये डब कब से बैठाया गया और क्यूं बैठाया गया, यह कोई नहीं जानता था।
देहरादून के राजपुर रोड स्थित राष्ट्रीय दष्टिबाधितार्थ संस्थान परिसर में थी यह मजार। करीब तीस साल पहले मजार लैंटाना की झाडि़यों से घिरी हुई थी। मजार आम के पेड़ के नीचे बनी हुई थी। इसके निकट से पगडंडियों वाला रास्ता जाता था। यह कच्चा रास्ता भी दोनों ओर से झाड़ियों से घिरा था। मजार के कुछ  निकट एक कत्रिम धोबीघाट था। रात के सन्नाटे में यह जगह काफी भयावाह नजर आती थी। झाडि़यों के बीच एक्का-दुक्का छोटे पेड़ो पर दूर से जब कोई रोशनी चमकती, तो किसी व्यक्ति के खड़े होने का भ्रम फैलाती  थी। कमजोर दिल वाले इसे भूत समझकर दौड़ लगा देते।
सैय्यद बाबा के बारे में कई किवदंती भी थी। कोई कहता कि वह रात के बारह बजे सफेद घोड़े में बैठकर सफेद कपड़ों में मजार के आसपास भ्रमण करते हुए देखे जाते हैं। उस जमाने के दादा माने जाने वाले व्यिक्त की नाम रामू  था, जो हमारे मोहल्ले में ही रहा करता था। अस्सी के दशक में गैंगवार के दिनों में अक्सर पुलिस उसे  गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया करती थी। लोग बताते थे कि रामू  को भी सैय्यद बाबा के कहर का सामना करना पड़ा। जब मैं छोटा था तो मैने रामू  भाई से पूछा कि क्या आपने सैय्यद बाबा को देखा है। तब उन्होंने बताया कि एक  बार मजार के निकट लघुशंका करने पर उनकी तबीयत बिगड़ गई। उनके पिताजी ने झाड़फूंक कर उन्हें बचाया। मजार क्षेत्र के आसपास ज्यादा देर रुकने का डर। यह डर शायद सदियों से चला आ रहा था। इस डर से रामू  की तबीयत बिगड़ी या फिर कुछ और कारण रहा। जो कुछ भी हो, लेकिन लोग उस स्थान को पवित्र मानते थे। साथ ही वहां का डर हर एक के मन में था।
समय गुजरता गया,लेकिन मजार क्षेत्र  का  रहस्य बरकरार रहा। एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में होने के कारण में एक शहर से दूसरे शहर में तबादलों की मार झेल रहा था। करीब तीन साल सहारनपुर में रहने के बाद वर्ष 1999 में मैं वापस देहरादून आया। पता चला कि जहां मजार थी, उसके निकट से राजपुर रोड को कैनाल रोड से जोड़ने के लिए सड़क बनाई जा  रही है। इसके लिए मजार के निकट मजदूर खुदाई कर रहे थे। खुदाई के दौरान मजदूरों को जमीन में दबी एक छोटी हंडिया मिली। इसे निकाला गया, तो इसमें सिक्के भरे हुए थे। आसपास के बच्चों और कुछ लोगों ने सिक्के अपनी जेब में भर लिए। मुझे इसका पता तो मैने समाचार लिखा कि खुदाई में सिक्के मिले। सिक्कों  को देख  इतिहासकारों के मुताबिक बताया गया कि सिक्के समुद्रगुप्त के काल के हैं, तो कोई इसे दूसरे युग से जोड़कर देख रहा था। खैर जो भी हो समाचार प्रकाशित होने पर प्रशासन हरकत में आया और सारे सिक्के जब्त कर लिए गए। बचपन से मैं जिस सवाल की तलाश कर रहा था, सिक्के मिलने की घटना ने उसका उत्तर दे दिया। यानि सदियों पहले जिसने भी अपनी संपत्ति हंडिया में रखकर जमीन में छिपाई, उसी ने मजार बनाकर वहां लोगों के मन में भय भी बैठा दिया। यह भय वर्षों से लोगों के मन में बरकरार है। 
                                                                                                                               भानु बंगवाल

4 comments:

  1. सर, मेरे शहर में भी दो-तीन जगह पर मजार हैं, खोद डालूं क्‍या

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  2. भाई जी यहां मेरे शहर में भी एक मजार है आप कहें तो उसके आसपास खुदाई का काम शुरू किया जाए। यदि हां तो मार्ग दर्शन आपका मिलना चाहिए।

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  3. भाई जी यह आपका अच्‍छा प्रयास है। इससे जहां खाली समय का पूरा उपयोग हो सकेगा वहीं लेखन की दिशा में निरंतरता बनी रहेगी। हमें तो सिर्फ यहा फायदा होगा कि आपके अब इस काम से हमें कम फोन आएंगे।

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  4. बढ़ीया है सर जी। बधाई हो आपको।

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