Tuesday, 13 March 2012

बिछड़ा बच्चा.... 1

जब दसवीं में पढ़ता था, तब अंग्रेजी की किताब में एक कहानी पढ़ी थी, द लॉस्ट चाइल्ड। कहानी का सार यह था कि एक बच्चा मेले में तरह-तरह की वस्तुओं से आकर्षित होता है। हरएक को खरीदने की जिद करता है। माता पिता उसे नहीं दिलाते। भीड़ में वह बिछड़ जाता है और रोने लगता है।  एक व्यक्ति उसे गोद में उठाता है। बच्चे को वही चीजें देने का प्रयास करता है, जो वह पहले अपने माता पिता से मांग रहा था। इसके बावजूद बच्चा किसी भी वस्तु  की तरफ आकर्षित नहीं होता और निरंतर रोता रहता है। क्योंकि उस समय उसकी सबसे बड़ी जरूरत उसके माता पिता थे।
ये थी एक कहानी, जो शायद लेखक ने उस समय की किसी घटना को देखकर ही लिखी होगी। ऐसी घटना से अक्सर हर माता पिता को दो चार होना पड़ता है। इसके विपरीत कई बार खोने के अहसास होने के बाद भी बच्चे मस्त रहते हैं। रोना धोना छोड़कर विपरीत परिस्थतियों का धेर्य से सामना करते हैं। बात करीब तीस साल पहले की है। मेरी बड़ी बहन दिल्ली में रहती थी। गरमियों की छुट्टी में उनकी बेटी देहरादून में हमारे यहां रहती थी। ऐसे में उसे नाना-नानी से ज्यादा लगाव था। छुट्टी के बाद वापस दिल्ली जाते समय बड़ी बहन सफर में साथ के लिए मेरे से बड़ी बहन को ले गई। दिल्ली में एक सप्ताह रहकर उसे वापस लौटना था।
एक दिन दोनों बहन व मेरी भांजी सरोजनी नगर मार्केट गए। वहां किसी दुकान के भीतर बड़ी बहन गई। दूसरी बहन व भांजी बाहर खड़े रहे। उस दिन मार्केट में भीड़ थी। अचानक बहन की नजरों से भांजी  गायब हो गई। वह करीब चार साल की थी। दोनों बहनों ने उसे तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली। काफी देर हो गई। दोनों का रो-रोकर बुरा हाल था। साथ ही सोच रहे थे कि बच्ची का भी रोकर बुरा हाल होगा। जब वह नहीं मिली तो पुलिस को सूचना देना ही उचित समझा गया। सूचना देने जा रहे थे कि वह एक व्यक्ति की गोद में दिखाई दी। साथ ही वह आइसक्रीम भी खा रही थी। उक्त व्यक्ति ने बताया कि जब बच्ची उसे मिली कुछ घबराई हुई जरूर दिखी। उसने पता पूछा। वह दिल्ली के बजाय देहरादून का पता बता रही थी। कुछ ही देर में वह उससे ऐसी बातें करने लगी कि जैसे पहले से जानती हो। उसी ने दूर से अपनी मौसी को देख लिया और पास जाने को कहा।  
                                                                                                                        भानु बंगवाल

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