Wednesday, 14 March 2012

बच्चा खोया, पर नहीं रोया-2

भीड़भाड़ में माता-पिता से बिछड़ने पर अमूमन छोटे बच्चे रोना धोना शुरू कर देते हैं। उनका रोने का क्रम काफी देर तक चलता है। छोटे बच्चों की पहली पाठशाला ही उसके माता-पिता होते हैं, जिनके संरक्षण में वह चलना, बोलना आदि सीखता है। मां के पास ज्यादा रहने के कारण बच्चा हर विपत्ती में वह अपनी मां को ही याद करता है। यह आदत उसकी बड़े होने के बाद भी पड़ जाती है। ऐसे में जब बच्चा खोता है, तो वह रोते हुए सबसे पहले अपनी मां को ही याद  करता है।
एक वाक्या ऐसा हुआ कि अपनी माता से बच्चा बिछड़ तो गया, लेकिन उसे बिछड़ने का काफी देर तक अहसास तक नहीं हो पाया। हो सकता है उसे पता चला हो, लेकिन वह रोते नहीं दिखाई दिया। बात तब की है जब  मेरे छोटे बेटे की उम्र करीब ढाई साल थी। एक दिन मेरी पत्नी और भाभी बच्चों को लेकर देहरादून स्थित परेड मैदान में लगे मेले में गए। जब मैं छोटा था, तब मेले के नाम पर देहरादून में दो मेले लगा करते थे। एक होली के पांचवे दिन झंडे का मेला और दूसरा रामनवमी के बाद राजपुर मेला। राजपुर मेला झंडे के मेले के बाद लगता था। यानि झंडे का मेला ही राजपुर शिफ्ट हो जाता था। दोनों ही मेले में काफी भीड़ होती थी, जो आज भी लगता है और भीड़ होती है।
समय में बदलाव आया। पूंजीवादी संस्कृति हावी होती चली गई। उत्पाद बेचने के लिए मेलों का आयोजन सबसे सुलभ साधन बन गया। साथ ही मनोरंजन हो जाए, तो बच्चे भी आकर्षित होंगे। बच्चे जहां जाने की जिद करेंगे वहां माता-पिता भी जाएंगे। मेले में मेरी पत्नी व भाभी गए थे। मैं तो ड्यूटी में था। तभी रात करीब आठ बजे मोबाइल में पत्नी की काल आई कि आर्यन (मेरा छोटा बेटा) कहीं गुम हो गया। सुनकर मैं घबरा गया। पत्नी और ज्यादा न घबराए इसलिए उसे समझाते हुए कहा कि मिल जाएगा। आसपास खोजते रहो। खैर मैं भी मोटर साइकिल उठाकर मौके पर पहुंचा। मेरी पत्नी व भाभी के साथ ही अन्य बच्चे आर्यन को खोज रहे थे। उसके बिछड़ने के करीब दो घंटे हो चुके थे। तभी एक बड़े झूले की एक तरफ अंधेरे कोने में वह खड़ा मिल गया। वह बड़ी तल्लीनता से झूले का घूमना देख रहा था। आर्यन को देख हमने राहत की सांस ली। उसके मिलने के बाद भी स्वभाव के अनुरूप भाभी व पत्नी रो रही थी। तब उनका कहना था कि यदि नहीं मिलता तो क्या होता। दोनों को समझाकर मैने चुप कराया। उधर, आर्यन न तो रोता दिखाई दिया और न ही घबराया हुआ। तब शायद उसे अपने खोने का अहसास ही नहीं हो पाया था।
                                                                                                         भानु बंगवाल

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