मुसीबत कभी बता कर नहीं आती। यह आती है और चली जाती है। मुसीबत से
कई बार व्यक्ति आसानी से बच जाता है, तो कई बार यह पीछा नहीं छोड़ती। कभी तो अपनी
गलती भी नहीं हो और व्यक्ति मुसीबत में फंस जाता है। दूसरों को देखने में लगता है
कि कहीं हमारी ही गलती होगी। करीब बीस साल पहले देहरादून की बात है। एक शाम मैं
अपने दोस्त के साथ स्कूटर पर बैठकर घंटाघर से राजपुर रोड स्थित घर की तरफ जा रहा
था। पुलिस चौकी धारा के निकट स्कूटर पर पीछे से कार ने टक्कर मारी। अचानक लगी
टक्कर से मैं संतुलन खो बैठा और उछलकर स्कूटर समेत जा गिरा। स्कूटर की स्पीड कम
थी, लेकिन टक्कर काफी तेज। मैं और मेरे दोस्त के स्कूटर समेत गिरने के दौरान इसकी
चपेट में एक बुजुर्ग व्यक्ति भी आ गए। मौके पर भीड़ जमा हो गई। बुजुर्ग व्यक्ति ने
मुझे दोषी मानते हुए स्कूटर पकड़ लिया। वह जोर-जोर से हाय-हाय कर रहा था। मैरे
दोस्त ने हमें टक्कर मारने वाली कार को रोका। उसे एक महिला चला रही थी। महिला का
कहना था कि मैने तुम्हें टक्कर मारी और तुम्हें चोट नहीं आई। तुम्हारी टक्कर से
बुजुर्ग व्यक्ति के चोट आई। ऐसे में खुद ही मामला निपटाओ। मैने बुजुर्ग व्यक्ति से
पूछा बाबा कहां-कहां चोट आई। आपको अस्पताल लेकर चलता हूं। इस पर वह और जोर-जोर से
चिल्लाने लगा- हाय मैं मर गया। उसकी हर हाय-हाय के साथ मेरी घबराहट बढ़ रही थी।
माथे पर पसीना आने लगा और मैं कांप रहा था, कि कहीं बुजुर्ग को कुछ न हो जाए।
किसी ने सुझाव दिया
कि बुजुर्ग की शायद टांग टूट गई है। तुम दोनो (मैं व कार वाली लड़की) को उसके इलाज
के लिए कुछ खर्चा पानी दे देना चाहिए। मैं रकम देने की बजाय अस्पताल में उसका इलाज
कराने के पक्ष में था। इस बीच पुलिस भी आ गई। तमाशबीन लोगों की भीड़ में मेरे कई
परिचित भी मिल गए। इससे मुझमें साहस भी आ गया। पुलिस ने सभी को चौकी में चलने को
कहा। महिला चौकी जाने से परहेज कर रही थी, लेकिन बाद में वह भी तैयार हो गई। निकट ही चौकी
थी। जो बुजुर्ग टांग टूटने को लेकर कुछ देर पहले तक दहाड़े मार रहा था, वह कुछ कदम
लड़खड़ाकर चलने के बाद सामान्य रूप से चलने लगा। यही नहीं, चौकी जाने की बजाय वह
रास्ते से ही खिसक गया। अब चौकी में कार वाली लड़की और मैं ही पहुंचे। मेरा कोई
नुकसान नहीं था। इसलिए मुझे उससे कोई लेना-देना नहीं था। मैने उसके खिलाफ रिपोर्ट
लिखने से मना कर दिया। इस घटना को लेकर मेरे मन में अक्सर यही विचार आता है कि..आखिर
इसमें दोष किसका था। उस लड़की का जो ब्रेक नहीं लगा पाई और मेरे स्कूटर में टक्कर
मार दी। या मेरा कि गिरते समय मेरा स्कूटर बुजुर्ग से क्यों टकराया। या फिर वह
बुजुर्ग, जो सही सलामत टांग को टूटना बताकर काफी देर तक डामा रचता रहा।
भानु बंगवाल
No comments:
Post a Comment